पिछले सात वर्षों में भारतीय नौकरीपेशा लोगों की आमदनी में जो बढ़ोतरी हुई है, वह देखने में तो सही लगती है, लेकिन महंगाई के बढ़ते बोझ के सामने यह बेहद कम साबित हो रही है। हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि लोगों की औसत सैलरी में मामूली बढ़त हुई है, जबकि खर्चे कई गुना बढ़ गए हैं।
औसत सैलरी में केवल मामूली बढ़ोतरी
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 से 2024 के बीच नौकरी करने वाले लोगों की औसत मासिक सैलरी में केवल कुछ हज़ार रुपये की वृद्धि हुई है। सात साल पहले जहां औसत वेतन लगभग ₹16,500 था, वहीं अब यह बढ़कर ₹21,000 के करीब पहुंचा है। यानी इतने लंबे समय में केवल ₹4,500 से ₹5,000 की ही बढ़ोतरी हुई है।
यह आंकड़े दिखाते हैं कि वेतन में लगभग 27% की बढ़त हुई, लेकिन जब इसे महंगाई दर से तुलना की जाती है, तो यह वृद्धि लगभग नगण्य हो जाती है। आम लोगों की क्रय शक्ति यानी खरीदने की क्षमता में कोई बड़ा सुधार देखने को नहीं मिला।
बेरोजगारी में गिरावट, लेकिन सैलरी का स्तर नहीं बदला
रिपोर्ट का एक सकारात्मक पहलू यह है कि देश में बेरोजगारी दर घटी है। सात साल पहले बेरोजगारी दर करीब 6% थी, जो अब घटकर 3% के आसपास पहुंच गई है। इसका मतलब है कि रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
हालांकि, यह भी सच है कि नई नौकरियों में सैलरी का स्तर बहुत ऊँचा नहीं है। युवाओं को रोजगार तो मिल रहे हैं, लेकिन वेतन इतना नहीं कि बढ़ती महंगाई और जरूरतों को पूरा किया जा सके।
EPFO के आंकड़ों से दिखी नौकरियों में बढ़ोतरी
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि हाल के वर्षों में रोजगार के अवसरों में सुधार हुआ है। केवल वित्त वर्ष 2024-25 में ही लगभग 1.3 करोड़ नए सदस्य EPFO से जुड़े हैं। इनमें से ज्यादातर युवा हैं, जो यह दर्शाता है कि नई पीढ़ी नौकरी और सामाजिक सुरक्षा दोनों के महत्व को समझ रही है।
स्वरोजगार की ओर बढ़ता रुझान
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अब पहले से कहीं अधिक लोग स्वरोजगार या छोटे व्यवसायों की ओर बढ़ रहे हैं। जहां साल 2017 में स्वरोजगार करने वालों की संख्या करीब 52% थी, वहीं अब यह आंकड़ा 58% के आसपास पहुंच गया है। यह बताता है कि स्थायी नौकरियों की कमी के बीच लोग खुद के लिए नए अवसर बना रहे हैं। हालांकि, यह रुझान यह भी दर्शाता है कि सुरक्षित और स्थिर नौकरियों की उपलब्धता अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत में रोजगार के अवसर तो बढ़े हैं, लेकिन सैलरी में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है। महंगाई के मुकाबले लोगों की आमदनी का स्तर पीछे रह गया है। सरकार और उद्योग दोनों को मिलकर ऐसा माहौल तैयार करना होगा, जिससे लोगों को न केवल नौकरी मिले, बल्कि सम्मानजनक और स्थिर वेतन भी प्राप्त हो।